यह एक नए युग की शुरुआत है!
क्या हम जानते हैं कि अयोध्या में मूल राम मंदिर को ध्वस्त करके बनाई गई बाबरी मस्जिद के स्थान पर राम मंदिर का निर्माण संभवतः मानव जाति के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना है?
मैं इतने व्यापक कैनवास पर इसकी चर्चा क्यों कर रहा हूं?
दोनों बड़े अब्राहमिक धर्मों ने अपने आविर्भाव के समय से ही यह रीत बनाई कि हमसे पहले जो था वह "pagan" या "zahilliyat" था और उसके प्रतीकों का नष्ट होना लाज़मी था।
अब हागिया सोफिया को लें। पहले यह एक कैथेड्रल था अब मस्जिद है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह कैथेड्रल बनने से पूर्व एक pagan मन्दिर था जिसे ध्वस्त करके कैथेड्रल बना था? रोमन साम्राज्य को परास्त करके ईसाई समुदाय ने अपने पूर्ववर्ती धर्मों को अवैध घोषित कर दिया था। इसी प्रकार यूरोप और उत्तरी अफ्रीका के तमाम पूजास्थल नष्ट कर दिए गए।
इस्लाम के उदय के बाद यही प्रक्रिया और अधिक उग्रता (ferocity)से, अधिक हिंसक तरीके से, दोहराई गई। इसका गुणगान करते हुए मुहम्मद इक़बाल ने अपनी नज़्म *शिकवा* में लिखा है:
हम से पहले था अजब तेरे जहाँ का मंज़र
कहीं मस्जूद थे पत्थर कहीं मा'बूद शजर
ख़ूगर-ए-पैकर-ए-महसूस थी इंसाँ की नज़र
मानता फिर कोई अन-देखे ख़ुदा को क्यूँकर
तुझ को मालूम है लेता था कोई नाम तिरा
क़ुव्वत-ए-बाज़ू-ए-मुस्लिम ने किया काम तिरा
........
थे हमीं एक तिरे मारका-आराओं में
ख़ुश्कियों में कभी लड़ते कभी दरियाओं में
दीं अज़ानें कभी यूरोप के कलीसाओं में
कभी अफ़्रीक़ा के तपते हुए सहराओं में
और दुनियां के अधिकांश हिस्सों से पूर्व अब्राहमिक धर्म मिट गए, उनके मानने वाले या तो कन्वर्ट हो गए, या मार डाले गए, और उनके पूजास्थल नष्ट कर दिए गए। उदाहरण के लिए ईरान, जो पारसियों का मूल स्थान था। इक़बाल की गर्वोक्ति देखिए:
तोड़े मख़्लूक़ ख़ुदावंदों के पैकर किस ने
काट कर रख दिए कुफ़्फ़ार के लश्कर किस ने
किस ने ठंडा किया आतिश-कदा-ए-ईराँ को
किस ने फिर ज़िंदा किया तज़्किरा-ए-यज़्दाँ को
भारत एकमात्र अपवाद है जहां अब्राहमिक धर्म पूर्व स्थापित धर्म, जिसे हम सनातन कहते हैं, को समाप्त नहीं कर सके।
भारत में कुछ असामान्य घटित हुआ ह, कुछ ऐसा जिसे विश्व-विजेता एकेश्वरवादी विश्वास ने पहले कभी नहीं देखा था। पहले से मौजूद, बहुदेववादी (बहु ईश्वरवादी नहीं) धर्म - बहुकेंद्रित, देवी-देवताओं से भरा, त्योहारों में धूप जलाना और नृत्य करना - जीवित रहा। और केवल छोटे इलाकों में नहीं, जैसे उत्तरी अमेरिका में मूल अमेरिकियों को सीमित कर दिया गया। लाखों-करोड़ों हिंदू उन्हें बुझाने के प्रयासों को नकारते हुए डटे रहे। अब्राहमिक आक्रांताओं ने उनके मंदिरों को तोड़ दिया और अपवित्र कर दिया और, कुछ मामलों में, उस स्थान पर (न केवल राम के जन्मस्थान पर, बल्कि कृष्ण के जन्मस्थान पर भी) एक नया पूजा घर बनाया। कभी-कभी उन्होंने अपने द्वारा तोड़े गए मंदिरों के पत्थरों के टुकड़ों से मस्जिद भी बना ली। अपमान के प्रतीक के तौर पर पूर्व के पूजा घरों के निशान भी बनाए रखे (ज्ञानवापी मस्जिद)। फिर भी हिंदू मंदिर बनाते रहे और पूजा करते रहे। औरंगज़ेब और टीपू सुल्तान जैसे क्रूर और बर्बर शासक अत्याचार करते रहे, हत्याएं करते रहे, मंदिर तोड़ते रहे, और आस्थावान पूजा करते रहे।
गौर करिए कि जिस काल में राम जन्मभूमि तोड़ कर बाबरी मस्जिद बनाई गई (1526 से 1530 के मध्य) उसी समय गोस्वामी तुलसीदास (1511 से 1623) ने रामकथा को संस्कृत की बजाय जनभाषा अवधी में रचकर राम को जनमानस में महानायक के रूप में स्थापित किया। कल्पना कीजिए बालक तुलसी दास का मानस कितना आहत हुआ होगा जब एक बर्बर आक्रान्ता ने उनके आराध्य का मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई। लेकिन उन्होंने, और उनके जैसे लाखों करोड़ों ने, अपनी निष्ठा की ज्योति जलाए रखी और पांच सौ सालों के संघर्ष की परिणिती आज हम देख रहे हैं।