Thursday, 3 October 2019

Tum Toh Pyar Ho (Rafi & Lata - Sehra, - 1963) - The Magical Maru Bihag





मेरे प्रिय गीत (3)
मेरा तीसरा प्रिय गीत फिल्म 'सेहरा' से है। गीत के बारे में बात करने से पहले कुछ बातें फिल्म के बारे में।वी शांताराम द्वारा निर्देशित यह फिल्म 1963 में प्रदर्शित हुई थी। मुख्य भूमिकाएं संध्या रॉय और प्रशांत ने निभाई थीं। संध्या रॉय तो शांताराम की बहुत सारी फिल्मों में हीरोइन कोई भूमिका में आईं (शांताराम ने बाद में उनसे विवाह भी कर लिया), लेकिन प्रशांत को हिंदी फिल्मों में बाद मे देखा नहीं गया और उनके बारे में अधिक जानकारी भी उपलब्ध नहीं है। रही बात शांताराम की, तो वह हिंदी सिनेमा के महान निर्देशकों में से थे और उन्होंने 'दो आँखें बारह हाथ', 'झनक झनक पायल बाजे', 'नवरंग' और 'गीत गया पत्थरों ने' जैसी महान फिल्में बनाईं। दरअसल शांताराम के बारे में एक पूरा लेख लिखा जा सकता है। 'सेहरा' के माध्यम से वी शांताराम ने 'रोमियो एंड जूलिएट' और 'हीरा राँझा' की तर्ज़ पर एक दुखांतक प्रेम कथा प्रस्तुत की जिसमे कबीलों की दुश्मनी प्रेम की बलि ले लेती है।
अब बात करते हैं फिल्म के संगीत की। फिल्म में कुल नौ गाने थे और सभी कर्णप्रिय थे। लेकिन तीन गाने जो सबसे ज़्यादा लोकप्रिय हुए वे थे - लताजी का गाया हुआ "पंख होते तो उड़ आती रे", रफ़ी साहब और लताजी द्वारा अलग अलग गया हुआ "तक़दीर का फ़साना" और लताजी-रफ़ी साहब का डुएट "तुम तो प्यार हो"। फिल्म के गीत हसरत जयपुरी ने लिखे और संगीत दिया रामलाल ने।
यहाँ रामलाल के नाम को लेकर मित्रों को थोड़ी जिज्ञासा हो सकती है क्योंकि यह नाम हिंदी फिल्म के संगीतकारों में सुना नहीं जाता। दरअसल रामलाल ने वी शांताराम की ही दो फिल्मों - 'सेहरा' और 'गीत गया पत्थरों ने' - के लिए संगीत दिया और फिर गुमनामी में खो गए। अजीब लगता है न, कि करियर की इतनी शानदार शुरुआत के बाद इतने प्रतिभासम्पन्न संगीतकार को काम नहीं मिला? इसके कारणों का अधिक पता नहीं चलता। कुछ लोगों का मत है कि उन्हें ब्रेक देते समय शांताराम ने उनसे कोई अनुबंध साइन कराया था जिसके कारण वह अनुबंध की अवधि में और किसी के साथ काम नहीं कर सकते थे और कुछ अनबन हो जाने के कारण खुद शांताराम ने दो फिल्मों के बाद उन्हें नहीं लिया। और इस तरह रामलाल प्रतिभा के बावजूद पटल से गायब हो गए। इससे यही लगता है कि कामयाबी के लिए सिर्फ प्रतिभा पर्याप्त नहीं। भाग्य की बड़ी भूमिका होती है
अब बात मेरे प्रिय गीत "तुम तो प्यार हो" की। यह गीत राग 'मारू बिहाग', जो 'बिहाग' का एक परवर्ती स्वरुप है, को आधार बनाकर स्वरबद्ध किया गया है। जानकारों की राय में जिस प्रकार 'तेरे सुर और मेरे गीत' 'बिहाग' का सर्वोत्तम हिंदी गीत है, उसी प्रकार यह गाना मारू बिहाग पर रचे हुए गीतों में सर्वोत्कृष्ट है। कम्पोजीशन पूरी तरह रोमांस के अनुरूप हैं और हसरत जयपुरी के शब्द भी पूरी तरह उपयुक्त हैं।लताजी और रफ़ी साहब की गायकी की गुणवत्ता को शब्दों में बांधना सूरज को चिराग दिखाने जैसा होगा। लेकिन इसकी सबसे बड़ी विशिष्टता है इसका फिल्मांकन। गाना ज़्यादातर लॉन्ग शॉट में फिल्माया गया है जिसमे नायक-नायिका मरुस्थल में कल्लोल करते दिखाई देते हैं। क्लोज अप शॉट्स कम हैं जिनमे चेहरे के भाव ठीक से कैप्चर हुए हैं। संध्या रॉय एक कुशल नृत्यांगना थीं, और उन्होंने कुछ अच्छी भंगिमायें प्रस्तुत की हैं। लेकिन सबसे ज़बरदस्त बात है फोटोग्राफी, जो मरुस्थल की चांदनी रात में परछाइयों तक को पूरी खूबसूरती से कैप्चर करती है। यह एक निर्देशक के रूप में शांताराम की डिटेल्स पर पकड़ तो दर्शाता ही है, सिनेमाटोग्राफर की दक्षता को भी प्रदर्शित करता है। इस फिल्म के लिए सिनेमैटोग्राफर कृष्णराव वशिरडे को फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था।
गाने का यूट्यूब लिंक:
https://youtu.be/gygx5W79b2g

(यहाँ इस गीत की बात समाप्त होती है। जिन मित्रों को रूचि हो उनके लिए एक अतिरिक्त जानकारी। सिख संगतों में गाया जाने वाला 'शबद' "मूरख मन काहे करसे मना" भी इसी राग मारू बिहाग में गाया जाता हैI मैंने सबसे पहले इसे चंडीगढ़ में एक गुरूद्वारे में सुना था। यह यूट्यूब पर उपलब्ध है और मैं उसका लिंक दे रहा हूँ। जिन मित्रो को रूचि हो सुन सकते हैं दिव्य अनुभूति होगी :https://youtu.be/gCofuqGpMVQ)

Acknowledgement and Disclaimer:
The song links have been embedded from the YouTube only for illustration of the points. This blog claims no copyright over these, which rests with the respective owners.


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