Thursday 3 October 2019

Tere Sur Aur Mere Geet - the coming together of Vasant Desai, Bismillah Khan and Lata Mangeshkar




मेरे प्रिय गीत (2)
अपनी पिछली पोस्ट में मैंने कहा था कि मित्रों की राय पर निर्भर करेगा कि यह श्रृंखला आगे चलेगी या नहीं। मेरे सुधी मित्रों - जिनकी संख्या कम हो सकती है - की राय पर श्रृंखला का दूसरा गीत प्रस्तुत है।
यह गीत 1959 में रिलीज़ हुई फिल्म 'गूँज उठी शहनाई' से है "तेरे सुर और मेरे गीत" जिसे भरत व्यास ने लिखा और वसंत देसाई ने स्वरबध्द किया। लताजी का गया हुआ यह गीत अमीता और राजेंद्र कुमार पर फिल्माया गया है। अब बात करते हैं इस गीत की विशिष्टताओं की। इसमें पहली बार किसी फिल्म के लिए उस्ताद बिस्मिल्ला खान ने शहनाई बजाई। संगीतकार वसंत देसाई के लिए यह बहुत बड़ी कामयाबी थी कि उन्होंने बिस्मिल्ला खान को बजाने के लिए राज़ी कर लिया था। दरअसल वसंत देसाई, जो ज़्यादातर मराठी फिल्मों में सक्रिय थे, ने वी शांताराम की फिल्मों 'झनक झनक पायल बाजे' और 'दो आँखें बारह हाथ' में उच्चकोटि का संगीत दिया था। खास तौर पर 'झनक झनक पायल बाजे', जिसमे पंडित गोपीकृष्ण ने शास्त्रीय नर्तक की भूमिका निभाई थी, में उनकी शास्त्रीय संगीत पर पकड़ का अच्छा प्रदर्शन हुआ था।
फिल्म में यह गीत प्रेम में दो व्यक्तियों के एकात्म हो जाने की स्थिति में फिल्मांकित किया गया है और रोमांस के लिए वसंत देसाई ने राग बिहाग का चयन किया। चूंकि शहनाई वादक के रूप में बिस्मिल्ला खान साहब शामिल थे इसलिए बिहाग के मूल स्वरुप से कोई छेड़छाड़ नहीं की गयी और जानकार इसे हिंदी फिल्मों में बिहाग पर आधारित सर्वोत्तम गीत मानते हैं। लताजी के स्वर और खान साहब की शहनाई की अद्भुत जुगलबंदी इस गीत को अद्वितीय बना देती है । अब अगर फिल्मांकन की बात करें तो श्वेत-श्याम के उस दौर में छायांकन उच्चकोटि का है। दोनों ही अभिनेताओं के भाव (Expressions) आकंठ प्रेम में डूबे युगल की तरह हैं। मैं यह तो नहीं कहूंगा कि उच्चकोटि का अभिनय है, लेकिन परदे पर की प्रस्तुति गीत के साथ पूरा न्याय करती है। नदी और उसमे परछाई का दृश्यांकन बहुत ही सहज और खूबसूरत है। भारत व्यास की शब्द रचना और सुर दोनों में अद्भुत समन्वय है।
(गीत के प्रिय होने के दो व्यक्तिगत कारण हैं। यद्यपि यह फिल्म मेरे जन्म से पहले रिलीज़ हुई थी, लेकिन मेरे मन पर जिस पहली फिल्म की छवि अंकित है , वह यही फिल्म है जो शायद मैंने 3-4 साल की उम्र में देखी थी। दूसरा व्यक्तिगत कारण यह है कि मैंने इसका एक छोटा सा टुकड़ा बजाते उस्ताद बिस्मिल्ला खान को रूबरू देखा था। दरअसल बनारस में राजघाट के इलाके में जहाँ हमारा घर है वहां मेरे पिताजी के एक वरिष्ठ मित्र हुआ करते थे पंडित कृपाराम उपाध्याय। वहीँ पड़ोस में पंडित कन्हैया लाल चतुर्वेदी, जो फिल्मों में कन्हैया लाल के नाम से अभिनय करते थे का भी घर था। बिस्मिल्ला खान साहब और कन्हैया लाल जी, कृपारामजी के करीबी मित्र थे। कृपारामजी की पुत्री के विवाह में (1975 या 1976 के आस पास) ये दोनों विभूतियाँ उपस्थित थीं और खान साहब ने अपने मित्र की बेटी के लिए आशीर्वाद स्वरुप इस गाने का एक टुकड़ा बजाया था। अब न वे तीनो रहे न मेरे पिताजी, लेकिन उस विवाह और इस गीत दोनों की छवि मेरे मानस पर अमिट है।)

गाने का यूट्यूब लिंक भी दे रहा हूं:
https://youtu.be/TiW-wm7jY58

Acknowledgement and Disclaimer:
The song links have been embedded from the YouTube only for illustration of the points. This blog claims no copyright over these, which rests with the respective owners.


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